
कैलाश सत्यार्थी
कैलाश सत्यार्थी एक भारतीय कार्यकर्ता, और समाज सुधारक हैं जिन्होंने भारत में बाल श्रम (चाइल्ड लेबर) के खिलाफ अभियान चलाया और उसी के साथ उनकी शिक्षा के अधिकार की वकालत भी की।
पूरा नाम : कैलाश सत्यार्थी
पूर्व नाम : कैलाश शर्मा
वैवाहिक स्थिति : विवाहित
पत्नी का नाम : सुमेधा सत्यार्थी
बच्चे : भुवन ऋभु, अस्मिता सत्यार्थी
माता-पिता : चिरौंजी, रामप्रसाद शर्मा
जन्म तिथि : 11 जनवरी 1954
जन्म स्थान : विदिशा, मध्य प्रदेश (भारत)
स्कूल : गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल
कॉलेज / विश्वविद्यालय : सम्राट अशोक टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट (अब बरकतउल्ला विश्वविद्यालय)
पुस्तकें : ग्लोबलाईजेसन, डेवलपमेंट एंड चाइल्ड राइट्स, आज़ाद बचपन की ओर, एव्री चाइल्ड मैटर्स, विल फॉर चिल्ड्रेन, द लाइट ऑफ द सेम सन, बिकॉज़ वर्ड्स मैटर्स, बदलाव के बोल, कोविड-19 सभ्यता का संकट और समाधान
पुरस्कार : नोबेल पीस पुरस्कार (2014), सीएनएन-आईबीएन इंडियन ऑफ द ईयर, रॉबर्ट एफ कैनेडी मानवाधिकार पुरस्कार (1995)
विषयसूची | Table of Contents
- कैलाश सत्यार्थी की जीवनी | Kailash Satyarthi life story
- कैलाश सत्यार्थी शिक्षा | Kailash Satyarthi education
- कैलाश सत्यार्थी करियर | Kailash Satyarthi career
- भारत यात्रा
- ऑर्गनाइज़ेशन्स
- कैलाश सत्यार्थी सम्मान और पुरस्कार | Kailash Satyarthi Honors and Awards
- कैलाश सत्यार्थी के बारे में रोचक तथ्य | Interesting facts about Kailash Satyarthi
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently asked questions
कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को विदिशा, मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर में हुआ था और वह अपने परिवार में चार भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे थे। उनके पिता एक रिटायर्ड पुलिस हेड कांस्टेबल थे और उनकी माँ उच्च सोच और नैतिकता वाली अशिक्षित गृहिणी थीं। कैलाश के अनुसार, उनकी माँ के इस असाधारण आदर्शवादी और मददगार स्वभाव का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। कैलाश का पालन-पोषण एक ऐसे इलाके (मोहल्ले) में हुआ, जहाँ हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर रहते थे।
जब कैलाश पहेली बार स्कूल जा रहे थे तब उन्होंने अपनी ही उम्र के एक बच्चे को जूते पोलिश करते हुए देखा। जब वो स्कूल से लौट रहे थे तब उन्होंने बहुत हिम्मत करके उस बच्चे और उस बच्चे के पिता से पूँछ डाला तो उस बच्चे के पिता ने कहा कि इसमें नया क्या है ये तो हमारे बाप दादा भी यही करते थे तो हम भी यही करते है और हमारा बेटा भी यही काम कर रहा है। इस बात ने उन्हें झंझोर दिया।
जब कैलाश चार साल के थे, तब उन्होंने अपने घर के पड़ोस की मस्जिद में एक मौलवी से उर्दू पढ़ना सीखा था और कैलाश जब 11 साल के थे तब उन्हें यह महसूस हुआ कि बहुत से बच्चों के पास किताबे न होने के कारण वो पढ़ाई से वंचित रहे जाते है इसलिए उन्होंने एक ठेला लेकर जो बच्चे पास हो चुके थे उनसे किताबे लेकर उन जरुरतमंद बच्चों तक गली गली जाकर वो किताबें पहुंचाई।
वैसे तो कैलाश पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर है लेकिन 26 साल की उम्र में ही उन्होंने अपना करियर छोड़ बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था और फिर बचपन बचाओ आंदोलन की स्थापना की।

कैलाश जी का नाम पहले कैलाश शर्मा था फिर उन्होंने उसको बदलकर कैलाश सत्यार्थी कर लिया और वो इसलिए किया क्यूंकि एक बार कैलाश जी ने सभी नेताओं को जितने हो सके करीब 10-15 नेताओ को खाने पर बुलाया, खाना जो हमारे समाज में जिन्हे अछूत बोला जाता है उन माओं ने बनाया था लेकिन कोई भी नेता वहां निमत्रण पर नहीं पहुँचा।
कैलाश सत्यार्थी उन सभी बच्चों को लेकर बहुत दुखी रहते थे जो अपनी युवावस्था में गरीबी के कारण स्कूल जाने से वंचित रह जाते थे। जब वह छोटे थे तब उन्होंने इन असमानताओं को बदलने की कोशिश करने के लिए कई प्रयास किए फिर सत्यार्थी ने ठान लिया और बड़े होते होते सत्यार्थी बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और सभी बच्चों की शिक्षा के अधिकार के लिए उनके संघर्ष के लिए इस सामाजिक कार्य में लग गए।
कारवां अभी रुका नहीं था कि बचपन बचाओ आंदोलन में कैलाश सत्यार्थी और उनकी टीम ने भारत में 90,000 से अधिक बच्चों को बाल श्रम, गुलामी और तस्करी से मुक्त कराया और विश्वविख्यात एक नया परचम लहरा दिया। सत्यार्थी आज भी रुके नहीं है वो अभी भी इस सामाजिक कार्य में अपनी टीम के साथ जुटे रहते है और अब वो नई दिल्ली में रहते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा, बहू, एक पोता, बेटी और एक दामाद शामिल हैं।
कैलाश सत्यार्थी शिक्षा | Kailash Satyarthi education
कैलाश सत्यार्थी ने विदिशा में ही अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने विदिशा में ही एक गवर्नमेंट बॉयज़ हायर सेकेंडरी स्कूल से अपनी पढ़ाई की, और विदिशा में ही सम्राट अशोक टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में अपनी स्नातक की डिग्री पूरी की, जो तब भोपाल विश्वविद्यालय, (अब बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय) से संबद्ध है उसके बाद उन्होंने हाई-वोल्टेज इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर की डिग्री भी वहीँ से पूरी की। कुछ सालों के लिए सत्यार्थी ने अपने ही कॉलेज में जहाँ से उन्होंने अपनी डिग्री ली थी वहां पर लेक्चरर के रूप में पढ़ाया भी था।
कैलाश सत्यार्थी करियर | Kailash Satyarthi career

मार्च करने वालों की मांगें यह थी कि मासूम छोटे बच्चे और युवा जो जबरन श्रम, शोषण, यौन शोषण, अवैध अंग प्रत्यारोपण, सशस्त्र संघर्ष आदि से पीड़ित है उनकी तस्करी को और इस प्रताड़ना को तत्काल रोकने का उपाय निकला जाये।
उन्होंने सेंटर फॉर विक्टिम्स ऑफ टॉर्चर (यूएसए), इंटरनेशनल लेबर राइट्स फंड (यूएसए) और कोको इनिशिएटिव सहित कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बोर्ड और समिति में भी काम किया है।
सत्यार्थी 2015 में फॉर्च्यून पत्रिका के “विश्व के महानतम नेताओं” में से एक चुने गए थे। उन्होंने ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर और इसके अंतर्राष्ट्रीय वकालत निकाय, इंटरनेशनल सेंटर ऑन चाइल्ड लेबर एंड एजुकेशन (ICCLE) की कल्पना की और उसका नेतृत्व भी किया, जो गैर सरकारी संगठनों, शिक्षकों और ट्रेड यूनियनों के विश्वव्यापी गठबंधन हैं।
उन्होंने 1999 से 2011 तक शिक्षा के लिए वैश्विक अभियान के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। सत्यार्थी एक्शनएड, ऑक्सफैम और एजुकेशन इंटरनेशनल के साथ इसके चारो संस्थापकों में से एक हैं।
2017 और 2018 में लिंक्डइन की पावर प्रोफाइल सूची में भी सत्यार्थी को शामिल किया गया था। सत्यार्थी ने 35 दिनों में 19,000 किमी की दूरी तय करते हुए बाल बलात्कार, बाल यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ कानून की मांग के लिए भारत में एक राष्ट्रव्यापी मार्च निकाला।
भारत यात्रा
बाल तस्करी और यौन शोषण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए केएससीएफ द्वारा भारत यात्रा शुरू की गई थी। 11 सितंबर 2017 को कन्याकुमारी में यह अभियान शुरू हुआ, और 22 भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करते हुए और 12,000 किमी से अधिक सात मार्गों के माध्यम से मार्च किया।
इस अभियान का उद्देश्य बाल यौन शोषण और बाल तस्करी के बारे में एक सामाजिक संवाद शुरू करना, भारत में वर्जित मुद्दों पर, समुदायों, स्कूलों में कमजोर बच्चों की रक्षा करना था। अभियान ने 5,000 नागरिक समाज संगठनों, 60 भारतीय आस्था नेताओं, 500 भारतीय राजनीतिक नेताओं, भारत सरकार के 600 स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय निकायों, भारतीय न्यायपालिका के 300 सदस्यों और पूरे भारत में 25,000 शैक्षणिक संस्थानों के साथ इस अभियान में सहयोग किया।
ऑर्गनाइज़ेशन्स
बचपन बचाओ आंदोलन की स्थापना 1980 में सत्यार्थी द्वारा एक बाल-सुलभ समाज बनाने के लिए एक जन आंदोलन के रूप में की गई थी, जहां सभी बच्चे बहिष्कार और शोषण से मुक्त हों और मुफ्त शिक्षा प्राप्त करें।
उन्होंने दक्षिण एशिया में बाल-श्रम के उपयोग के बिना निर्मित कालीनों की पहली स्वैच्छिक लेबलिंग, निगरानी और प्रमाणन प्रणाली के रूप में गुडवीव इंटरनेशनल (जिसे पहले रगमार्क के नाम से जाना जाता था) की स्थापना की।
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन (KSCF) की स्थापना 2004 में सत्यार्थी द्वारा की गई थी। यह एक जमीनी स्तर का संगठन है जो जागरूकता फैलाता है और बच्चों के अधिकारों के लिए लाभकारी नीतियों की वकालत करता है। फाउंडेशन केएससीएफ इंडिया और केएससीएफ यूएसए पूरे विश्व के लिए एक छाते के समान है।
सत्यार्थी ने शिक्षा के लिए वैश्विक अभियान का गठन किया और 1999 में इसकी स्थापना के समय इसके अध्यक्ष बने। शिक्षा के लिए वैश्विक अभियान गैर-सरकारी संगठनों का एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन है, जो अनुसंधान और वकालत के माध्यम से बच्चों और वयस्क शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। इसका गठन 1999 में गैर सरकारी संगठनों के बीच एक साझेदारी के रूप में किया गया था जो इस क्षेत्र में अलग से सक्रिय थे, जिसमें एक्शन एड, ऑक्सफैम, एजुकेशन इंटरनेशनल, ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर और बांग्लादेश, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय संगठन शामिल थे।
कैलाश सत्यार्थी सम्मान और पुरस्कार | Kailash Satyarthi Honors and Awards
सत्यार्थी को 2014 में “बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ संघर्ष और सभी बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिए” नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सत्यार्थी पहले प्राकृतिक रूप से जन्मे भारतीय नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं।

वर्ष | नाम | पुरस्कार देने वाला संगठन |
1993 | इलेक्टेड अशोक फेलो | यूएसए |
1994 | आचेनर इंटरनेशनल पीस अवार्ड | जर्मनी |
1995 | द ट्रम्पेटर अवार्ड | यूएसए |
1995 | रॉबर्ट एफ कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवार्ड | यूएसए |
1998 | गोल्डन फ्लैग अवार्ड | नीदरलैंड |
1999 | फ्रेडरिक एबर्ट स्टिचुंग अवार्ड | जर्मनी |
2002 | वालेनबर्ग मेडल | मिशिगन विश्वविद्यालय |
2006 | फ्रीडम अवार्ड | यूएसए |
2007 | हीरोज एक्टिंग टू एंड मॉडर्न डे स्लेवरी” की सूची में मान्यता प्राप्त | यूएस स्टेट डिपार्टमेंट |
2007 | स्वर्ण पदक | इटैलियन सीनेट |
2008 | अल्फोंसो कॉमिन इंटरनेशनल अवार्ड | स्पेन |
2009 | डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड | यूएसए |
2014 | नोबेल शांति पुरस्कार | नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी ऑन बीहाफ़ ऑफ अल्फ्रेड नोबेल |
2014 | आनरेरी डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी डिग्री | एलायंस यूनिवर्सिटी |
2015 | आनरेरी डॉक्टरेट | एमिटी यूनिवर्सिटी, गुड़गांव |
2015 | हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अवार्ड “ह्यूमनिटेरियन ऑफ द ईयर” | हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए |
2016 | मेंबर – फेलो | ऑस्ट्रेलियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट |
2016 | डॉक्टर ऑफ ह्यूमेन लेटर्स | लिंचबर्ग कॉलेज, यूएसए |
2016 | डॉक्टर ऑफ लॉ (एलएलडी) | वेस्ट बेंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ जूरीडिकल साइंसेज (भारत) |
2017 | पीसी चंद्र पुरस्कार | पी. सी. चंद्रा ग्रुप (भारत) |
2017 | गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड फ़ॉर चाइल्ड सेफ गार्डिंग लैसन | आयरलैंड |
2017 | डॉक्टर होनोरिस कौसा, ईएल रेक्टर मैग्निफिको डे ला यूनिवर्सिडैड पाब्लो डी ओलावाइड | स्पेन |
2018 | पर्सनालिटी ऑफ द डिकेड | दैनिक प्रयुक्ति |
2018 | होनोरिस कौसा इन साइंस | एमिटी यूनिवर्सिटी (भारत) |
2018 | संतोखबा ह्यूमनिटेरियन अवार्ड | राष्ट्रपति (भारत) |
2019 | वॉकहार्ट फाउंडेशन, लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड | इंडिया टीवी |
2019 | मदर टेरेसा मैमोरियल अवार्ड फॉर सोशल जस्टिस | एशिया न्यूज़ |
कैलाश सत्यार्थी के बारे में रोचक तथ्य | Interesting facts about Kailash Satyarthi
10 ऐसे कुछ अज्ञात और रोचक तथ्य कैलाश सत्यार्थी के बारे में जो शायद आप नहीं जानते होंगे। आइए आपको कुछ ऐसे ही तथ्य बताते है :
- कैलाश जी का नाम पहले कैलाश शर्मा था फिर उन्होंने उसको बदलकर कैलाश सत्यार्थी कर लिया, जिसका अर्थ होता है सत्य की खोज में निकलने वाला।
- सत्यार्थी पहले प्राकृतिक रूप से जन्मे भारतीय नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं।
- 1977 में वे नई दिल्ली में स्थानांतरित हो गए, जहां उन्होंने आर्य समाज के लिए साहित्य के प्रकाशक के लिए काम किया, जो एक हिंदू सुधार आंदोलन था।
- उन सिद्धांतों से प्रेरित होकर, सत्यार्थी ने एक पत्रिका, संघर्ष जारी रहेगा (द स्ट्रगल विल कंटिन्यू) की स्थापना की, जिसने कमजोर लोगों के जीवन का दस्तावेजीकरण किया।
- कैलाश पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर है लेकिन 26 साल की उम्र में ही उन्होंने अपना करियर छोड़ बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था और फिर बचपन बचाओ आंदोलन की स्थापना की।
- 2017 और 2018 में लिंक्डइन की पावर प्रोफाइल सूची में भी सत्यार्थी को शामिल किया गया था।
- सत्यार्थी ने 35 दिनों में 19,000 किमी की दूरी तय करते हुए बाल बलात्कार, बाल यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ कानून की मांग के लिए भारत में एक राष्ट्रव्यापी मार्च निकाला।
- सत्यार्थी ने बाल श्रम के खिलाफ वैश्विक मार्च की कल्पना की और इसका नेतृत्व किया, बाल श्रम के सबसे खराब रूपों के खिलाफ वैश्विक मांग को आगे बढ़ाने के लिए 103 देशों में 80,000 किमी लंबा मार्च निकाला। शोषित बच्चों की ओर से यह अब तक का सबसे बड़ा सामाजिक आंदोलन साबित हुआ।
- जब कैलाश चार साल के थे, तब उन्होंने अपने घर के पड़ोस की मस्जिद में एक मौलवी से उर्दू पढ़ना सीखा था।
- बचपन बचाओ आंदोलन में कैलाश सत्यार्थी और उनकी टीम ने भारत में 90,000 से अधिक बच्चों को बाल श्रम, गुलामी और तस्करी से मुक्त कराया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently asked questions
कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को विदिशा, मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर में हुआ था और वह अपने परिवार में चार भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे थे।
कैलाश जी का नाम पहले कैलाश शर्मा था फिर उन्होंने उसको बदलकर कैलाश सत्यार्थी कर लिया, जिसका अर्थ होता है सत्य की खोज में निकलने वाला।
भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को पैदा हुए कैलाश सत्यार्थी को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने हेतु शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। उन्हें बाल श्रम के खिलाफ अभियान चलाकर हजारों बच्चों की जिंदगियां बचाने का श्रेय दिया जाता है।
बचपन बचाओ आंदोलन भारत में एक आन्दोलन हैं जो बच्चो के हित और अधिकारों के लिए कार्य करता हैं। वर्ष 1980 में "बचपन बचाओ आंदोलन" की शुरुआत कैलाश सत्यार्थी ने की थी जो अब तक 80 हजार से अधिक मासूमों के जीवन को तबाह होने से बचा चुके हैं। बाल मजदूरी कुप्रथा भारत में सैकड़ों साल से चली आ रही है।
कैलाश सत्यार्थी
यह बाल अधिकारों के संघर्ष करने वाला देश का सबसे लंबा आंदोलन है। नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा ने इसकी शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी।
स्वीडन नार्वे
करुणा और सेवा की साकार मूर्ति मदर टेरेसा प्रथम महिला नोबेल पुरस्कार विजेता (1979) है।
रवींद्रनाथ ठाकुर साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे। उन्हें उनकी कविताओं की पुस्तक गीतांजलि के लिए 1913 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया।